बद्रीनाथ धाम का इतिहास, क्या है रहस्य | History of Badrinath dham in hindi

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बद्रीनाथ धाम का इतिहास, बद्रीनाथ की उत्पति, बद्रीनाथ धाम की पौराणिक कथाएँ,बद्रीनाथ मन्दिर के रहस्य (history of badrinath dham, history of badrinath dham in hindi, history of badrinath dham, badrinath mandir ka itihas, )

भगवान विष्णु के बदरी रूप को समर्पित बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का “आठवाँ वैकुंठ” कहा जाता है। बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड में चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धामों में से एक है , साथ ही इसे छोटा चार धाम (गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ ) भी कहा जाता है।

मान्यता है कि बद्रीनाथ धाम की स्थापना सतयुग में नारायण ने की थी। मान्यताओं के अनुसार पहले बद्रीनाथ धाम में भगवान शिव का निवास था फिर भगवान विष्णु ने इस स्थान को अपने ध्यान के लिए शिव जी से मांग लिया था। (history of badrinath dham बद्रीनाथ की उत्पति, बद्रीनाथ धाम की पौराणिक कथाएँ)

बद्रीनाथ धाम की उत्पत्ति एवं स्थापना

बद्रीनाथ धाम की उत्पत्ति के विषय में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। मन्दिर की वास्तुकला से यह पता चलता बद्रीनाथ मन्दिर आठवीं शताब्दी तक एक बौद्ध मठ था। आदि गुरु शंकराचार्य ने इसे हिंदू मन्दिर मे परिवर्तित किया।

स्रोतों के अनुसार शंकराचार्य ने इस मंदिर को तीर्थ स्थान में स्थापित किया और ६ वर्षों तक यही रहे ।
हिन्दू अनुयायियों के अनुसार, –

जब बौद्धों का पराभव हुआ तो उस समय उन्होंने बद्रीनाथ की मूर्ती अलकनंदा में फेक दी थी जिसे शंकराचार्य ने खोजै और तप्त कुंड के पास गुफा में स्थापित किया ।

History of badrinath dham in hindi | बद्रीनाथ धाम का इतिहास व रहस्य

बद्रीनाथ कैसे बना भगवान विष्णु का निवास स्थान

बद्रीनाथ धाम को लेकर कई मान्यताएँ हैं –

1. एक मान्यता अनुसार –

एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए क्षीर सागर में पधारे, और उन्होंने माता लक्ष्मी को भगवान् विष्णु के पैर दबाते देखा। भगवान् विष्णु नारद मुनि को देखकर अपराध बोध से ग्रसित हो गए और तपस्या करने हिमालय पर्वत पर चले गए। (History of badrinath dham | बद्रीनाथ धाम का इतिहास )

भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीं हो गए तो वहां पर अत्यधिक बर्फ गिरने लगी यह देख माता लक्ष्मी ने बद्री पेड़ (बेर के पेड़) का रूप ले लिया और भगवान विष्णु को बर्फ से बचने के लिए वहां पर खड़ी हो गयी.तथा समस्त बर्फ को अपने ऊपर सेहती रही ।


कई सालों बाद जब भगवान विष्णु अपनी तपस्या से बाहर आए तो उन्होंने देखा माता पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई है. भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को बोला – हे देवी तुमने भी मेरी तरह कठोर तपस्या की है इसलिए आज से यहां पर मेरे साथ तुम्हे भी इस स्थान पर पूजा जायेगा . तुमने मेरी रक्षा बद्री के पेड़ के रूप में की है इसलिए आज से मुझे बदरी के नाथ “बद्रीनाथ ” नाम से पूजा जायेगा
। (History of badrinath dham | बद्रीनाथ धाम का इतिहास )

2. दूसरी कथा के अनुसार –

एक बार भगवान विष्णु अपने ध्यान के लिए हिमालय पर्वत पर स्थान ढूंढ रहे थे, तभी उन्होंने अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान देखा और उन्हें यह स्थान बहुत पसंद आया ,वे जानते थे यह स्थान भगवान शिव का है तो उन्होंने एक योजना बनायीं और बाल रूप में अवतार लेकर जोर जोर से रोने लगे,

उनके रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती का ह्रदय द्रवित हो गया और उन्होंने बालक से पुछा उसे क्या चाहिए ,तो वह बालक ने उनसे ध्यान योग हेतु वह स्थान मांग लिया और तभी से वह स्थान भगवन विष्णु का हो गया । (History of badrinath dham | बद्रीनाथ धाम का इतिहास )

3. अन्य कथा के अनुसार –

विष्णु पुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार यहां पर नर और नारायण नामक २ ऋषियों ने तपस्या की थी, ये दोनों धर्म के पुत्र थे ,इन्होने कई वर्षों तक इस स्थान पर तपस्या की अपना आश्रम को स्थापित करने के उद्देश्य से इन्होने वृद्ध बदरी,ध्यान बदरी,योग बदरी और ध्यान बदरी का भ्रमण किया किन्तु इन्हे अलकनंदा के पीछे एक गर्म और ठन्डे पानी का चस्मा मिला इस क्षेत्र को उन्होंने बदरी विशाल नाम दिया

यह भी मान्यता है की नर और नारायण के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव केदारनाथ में प्रकट हुए थे और नर नारायण ने ही अगले जन्म में अर्जुन और श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था । (History of badrinath dham | बद्रीनाथ धाम का इतिहास )

बद्रीनाथ धाम कहाँ स्थित है (Location of Badrinath Dham)

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(History of Badrinath dham | बद्रीनाथ धाम का इतिहास और रहस्य)

बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली जनपद में हिमालय पर्वत की ऊँची श्रृंखला पर स्थित है । मंदिर के नाम पर ही इसके आस पास बसे हुए नगर को बद्रीनाथ कहते है, समुद्र तल से इस स्थान की ऊंचाई 3,133 मीटर है.

यह स्थान हिमालय के जिस अनुक्रम में स्थित है उसे महान हिमालय या मध्य हिमालय के नाम से जाना जाता है

बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी से 50 मीटर ऊँचे धरातल पर बना है ।

बद्रीनाथ मन्दिर के पुजारी :

बद्रीनाथ मन्दिर के पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होते हैं। ये केरल राज्य के नंबूदरी संप्रदाय के ब्राह्मण होते हैं। इन्हें “रावल” कहा जाता है।

अन्य ग्रंथों में बद्रीनाथ धाम का वर्णन :

बद्रीनाथ मन्दिर का उल्लेख विष्णु पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत के अलावा अन्य वैदिक ग्रंथो में भी हुआ है।

स्कन्द पुराण में इस मन्दिर का वर्णन करते हुए लिखा गया है:

बहुनि सन्ति तीर्थानी दिव्य भूमि रसातले। बद्री सदृश्य तीर्थं न भूतो न भविष्यति :”, इसका अर्थ है – स्वर्ग, पृथ्वी तथा नर्क तीनों ही जगह अनेकों तीर्थ स्थान हैं, परन्तु फिर भी बद्रीनाथ जैसा कोई तीर्थ न कभी था, और न ही कभी होगा।

महाभारत में बद्रीनाथ का वर्णन करते हुए लिखा गया है – अन्यत्र मरणामुक्ति: स्वधर्म विधिपूर्वकात। बदरीदर्शनादेव मुक्ति: पुंसाम करे स्थिता

अर्थात अन्य तीर्थों में तो स्वधर्म का विधिपूर्वक पालन करते हुए मृत्यु होने से ही मनुष्य की मुक्ति होती है, किन्तु बद्री विशाल के दर्शन मात्र से ही मुक्ति उसके हाथ में आ जाती है। ( History of badrinath dham ,history of badrinath dham in hindi | बद्रीनाथ धाम का इतिहास और रहस्य)

बद्रीनाथ धाम से जुड़ी मान्यताएं :

मान्यता है कि जब माँ गंगा धरती पर अवतरित हुई तो , यह 8 धाराओं में विभाजित हो गयी थी। जो धारा बद्रीनाथ धाम के पास है उसे अलकनंदा कहा गया और इस स्थान पर भगवान विष्णु का वास हुआ।

अलकनंदा की सहचरिणी नदी मंदाकिनी के नाम से विख्यात हुई और इसी के किनारे केदारनाथ स्थित है, जो कि भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

कहते है कि बद्रीनाथ क्षेत्र में पहले बहुत से बदरी( जंगली बेर) के पेड़ हुआ करते थे, इसीलिए इस क्षेत्र का नाम बद्रीनाथ पड़ा।

क्या भविष्य में विलुप्त हो जायेंगे बद्रीनाथ धाम :

कई लोगों का ऐसा मानना है कि भविष्य में बद्रीनाथ धाम विलुप्त हो जायेगा। जोशीमठ में भगवान नरसिंह का मन्दिर है, जिसका बद्रीनाथ से खास जुड़ाव माना जाता है।

मान्यता के अनुसार जिस शालिग्राम पत्थर में शंकराचार्य नारायण की पूजा किया करते थे, उसी पत्थर में भगवान नरसिंह की मूर्ति उभर आई थी । नारायण ने उन्हें नरसिंह के शांत रूप का दर्शन दिया था।

भगवान बद्रीनाथ को कपाट बंद होने पर 6 महीने के लिए जोशीमठ लाकर इसी मन्दिर में पूजा जाता है। कहा जाता है कि जोशीमठ में स्थित भगवान नरसिंह की मूर्ति का एक हाथ हर साल पतला होता जा रहा है। और अभी भगवान का वह हाथ सुई की गोलाई के बराबर रह गया है।

जिस दिन यह हाथ अलग हो जायेगा उस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जायेंगे और बद्रीनाथ जाने का रास्ता बंद हो जायेगा।

मान्यताओं की मानें तो कहते हैं कि भविष्य में बद्रीनाथ मन्दिर विलुप्त हो जायेगा और सालों बाद भविष्य में भविष्य बद्री के रूप मे सामने आयेगा। ( History of badrinath dham)

बद्रीनाथ धाम के आस पास के स्थान | Places Near Badrinath Temple

तप्त कुंड
नीलकंठ चोटी
सतोपंथ सरोवर
गणेश गुफा
व्यास गुफा
भीम पुल
माढ़ा गांव
जोशीमठ
चरणपादुका
माता मूर्ति मंदिर
घंटाकर्ण मंदिर
वासुकी ताल
वसुंधरा फॉल्स
लीला ढोंगी
उर्वशी मंदिर
पंच शिला
सरस्वती नदी

बद्रीनाथ जाने का रास्ता (मार्ग)

बद्रीनाथ जाने के लिए 3 ओर से रास्ते हैं।

  • रानीखेत
  • कोटद्वार से पौड़ी होते हुए
  • हरिद्वार से देवप्रयाग होते हुए

ये तीनों ही रास्ते आगे कर्णप्रयाग में मिलते हैं।

उत्तराखंड के देहरादून से बद्रीनाथ जाने के मार्ग में ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग कर्णप्रयाग, चमोली तथा जोशीमठ से होते हुए बद्रीनाथ पहुँचते हैं। यहाँ से आगे जाने पर माणा गाँव पड़ता है जो कि भारत चीन की सीमा पर स्थित है।

उम्मीद है बद्रीनाथ धाम ( history of badrinath dham in hindi | बद्रीनाथ धाम का इतिहास व पौराणिक कथाएँ) के विषय में दी गयी यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। अगर आप चार धाम यात्रा से के विषय में कुछ और जानकारी चाहते हैं, तो comment करके बताये।

FAQ’s (History of badrinath in hindi)

बद्रीनाथ कहां स्थित है?

बद्रीनाथ उत्तराखंड राज्य के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है बद्रीनाथ ऋषिकेश से 294 किलोमीटर की दूरी पर है

केदारनाथ से बद्रीनाथ कितने घंटे का रास्ता है?

केदारनाथ से बद्रीनाथ धाम की की दूरी 218 km है। जिसे सड़क मार्ग से लगभग 5 घंटे में तय किया जा सकता है।

हरिद्वार से बद्रीनाथ कैसे जाते हैं?

हरिद्वार से बद्रीनाथ की दूरी लगभग 316 km है। बस द्वारा 9 -10 घंटे में हरिद्वार से बद्रीनाथ पहुँचा जा सकता है।

क्या बद्रीनाथ से पहले केदारनाथ जाना जरूरी है?

बद्रीनाथ धाम जाने से पहले केदारनाथ धाम जाना चाहिए, क्योकिं भगवान शिव ने ही भगवान विष्णु को बद्रीनाथ में रहने के लिए निवास दिया था।

चार धाम यात्रा का सही क्रम क्या है?

चारधाम यात्रा यमनोत्री से शुरू होती है जिसके बाद गंगोत्री,केदारनाथ और फिर बद्रीनाथ की यात्रा पर समाप्त होती है

बद्रीनाथ धाम की यात्रा के लिए कितने दिन चाहिए?

बद्रीनाथ धाम की आराम से यात्रा करने के लिए 2 दिन काफी है ।2 दिन में आप बद्रीनाथ के आसपास के क्षेत्र जैसे भीम पुल, माणा गावं, तप्त कुंड आदि भी घूम सकते हैं।

Image sources : wikipedia

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