तुंगनाथ मंदिर का इतिहास, तुंगनाथ मंदिर का रहस्य, तुंगनाथ मंदिर कितना पुराना है, तुंगनाथ मन्दिर की कहानी, तुंगनाथ मन्दिर कैसे पहुँचे, केदारनाथ से तुंगनाथ की दूरी ( Tungnath temple history in hindi, tungnath mandir kese pahuche, tungnath mandir ki kahani )
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित भगवान शिव को समर्पित तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है, जिसे हाल ही में सरकार द्वारा (तुंगनाथ मंदिर) राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दे दिया गया है । 3640 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर पंच केदार में से एक है। माना जाता है कि तुंगनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था
केंद्र सरकार द्वारा 27 मार्च की अधिसूचना में तुंगनाथ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया था। आज हम इस अर्टिकल में आपके लिए तुंगनाथ मन्दिर से जुड़ी सभी पौराणिक कथाएँ, मान्यताएं , तुंगनाथ मन्दिर का इतिहास (Tungnath temple history in hindi) और अन्य सभी जानकारी लेकर आयें हैं।
हाल ही में तुंगनाथ मंदिर में 6 से 10 डिग्री का झुकाव देखा गया है। तुंगनाथ मंदिर में 6 डिग्री का झुकाव देखा गया है एवं अंदर रखी मूर्तियों में 10 डिग्री का झुकाव है।
Tungnath temple history in hindi | तुंगनाथ मंदिर का इतिहास )
तुंगनाथ मन्दिर का इतिहास व रहस्य हिंदी में | Tunganath Temple History in hindi
उत्तराखंड चार धाम यात्रा (2023) शुरू हो चुकी है, जिसे छोटा चार धाम यात्रा भी कहा जाता है।जिनमें गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ आते हैं। केदारनाथ धाम भगवान शिव का मन्दिर है और पंच केदार में से एक hair।
केदारनाथ धाम के अतिरिक्त भगवान शिव के 4 अन्य मन्दिर तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर तथा कल्पेश्वर को मिलाकर एक साथ “पंच केदार” कहा जाता है।
भगवान शिव को समर्पित तुंगनाथ मंदिर हजारों साल पुराना है। तुंगनाथ मंदिर की ऊंचाई 3640 मीटर है।
कहा जाता है कि तुंगनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव से क्षमा याचना के लिए गए। इसी प्रयास में पांडवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तुंगनाथ मंदिर का निर्माण किया गया।
(Tungnath temple history in hindi | तुंगनाथ मंदिर का इतिहास )
- तुंगनाथ मन्दिर का इतिहास व रहस्य हिंदी में | Tunganath Temple History in hindi
- तुंगनाथ मन्दिर का इतिहास ( भगवान शिव ने धर लिया था भैसे का रूप | Tungnath temple history in hindi
- भगवान शिव के बाहु (हाथों) की होती है पूजा
- तुंगनाथ मन्दिर की location
- तुंगनाथ मन्दिर का महत्व | Tungnath Mandir ka Mahatv
- तुंगनाथ मन्दिर से जुड़ी पौराणिक कहानियाँ
- रावण वध के बाद श्री राम ने किया था पश्चताप
- दक्ष के श्राप से मुक्ति हेतु,चन्द्रमा ने की थी भगवान शिव की आराधना
- तुंगनाथ मन्दिर जाने का सही समय
- मन्दिर को मिल सकता है ‘राष्ट्रीय स्मारक’ का दर्जा
- तुंगनाथ मन्दिर के पास के पर्यटक स्थान
- तुंगनाथ मन्दिर कैसे पहुँचे
- FAQ’s
तुंगनाथ मन्दिर का इतिहास ( भगवान शिव ने धर लिया था भैसे का रूप | Tungnath temple history in hindi
महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने ही भाइयों को मारने के दोष स्वरूप काफी व्याकुल थे इस व्याकुलता को लेकर वह महर्षि वेदव्यास के पास गए।
तब वेदव्यास ने पांडवों को बताया कि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से केवल भगवान से भी बचा सकते हैं और उन्होंने पांडवों को भगवान शिव से मिलने के लिए कहा
पांडव भगवान शिव को ढूंढने के लिए हिमालय पर्वत तक जा पहुंचे लेकिन भगवान से पांडवों से नाराज थे और उन्होंने पांडवों को आता देख वैसे का रूप धारण कर लिया और पैसे के झुंड के बीच में चले गए।
Tungnath temple history in hindi | तुंगनाथ मंदिर का इतिहास
जब पांडवों ने पैसे के झुंड को देखा तो भीम ने भगवान शिव को पहचान लिया और उनका पीछा किया। भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर 2 पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिये, सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से निकल गए लेकिन भैसे का रूप धारण किए भगवान शिव भीम के पैरों के नीचे से नहीं गए। और अंतर्ध्यान होने लगे । तभी भीम ने भैसें के पीठ का भाग पकड़ लिया। तभी से केदारनाथ में भगवान शिव के बैल या भैसे की पीठ की आकृति के रूप में पूजा की जाती है। Tungnath temple history in hindi | तुंगनाथ मंदिर का इतिहास )
भगवान शिव ने प्रसन्न होकर पांडवों को भ्रातृ हत्या से मुक्त किया।
जब भगवान शिव अंतर्ध्यान हुए तो तो उनकी भुजाएँ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में और जटाएं कल्पेश्वर् में प्रकट हुई।
इस तरह भगवान शिव के पांच जगहों पर अपने शरीर को छोड़ा जो कि “पंच केदार” कहलाये।
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भगवान शिव के बाहु (हाथों) की होती है पूजा
तुंगनाथ मन्दिर में भगवान शिव के भुजाओं ( हाथों) की पूजा की जाती है।
तुंगनाथ मन्दिर की location
तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है । यह स्थान पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत सुंदर और लुभावना है । तुंगनाथ मंदिर तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है जिसकी ऊंचाई 3640 मीटर है।
तुंगनाथ मंदिर से डेट किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रशिला नामक छोटी है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 14000 फीट है।
तुंगनाथ मंदिर चोपता से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चोपता की ऊंचाई समुद्र तल से 12000 फुट है।
तुंगनाथ मन्दिर का महत्व | Tungnath Mandir ka Mahatv
पंचकेदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर का महत्व अन्य चार केदारों में से अधिक है क्योंकि यह स्थान भगवान शिव के साथ-साथ मां पार्वती ,भगवान श्री राम, रावण से भी जुड़ा हुआ है।
तुंगनाथ मन्दिर विश्व में सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित शिव मन्दिर है। तुंगनाथ मन्दिर हिंदुओं के लिए एक लोकप्रिय धार्मिक स्थान है। यह स्थान ट्रैकर्स के लिए भी एक लोकप्रिय स्थान है।
तुंगनाथ मन्दिर से जुड़ी पौराणिक कहानियाँ
मान्यता है कि रावण द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की गई थी।
रावण वध के बाद श्री राम ने किया था पश्चताप
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण के वध करने के बाद इसी स्थान पर रावण शिला में भगवान शिव की स्तुति की थी और उन्हें खुद को पाप से मुक्त करने के लिए आग्रह किया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें इस पाप से मुक्ति दी थी।
इससे पहले भी भगवान श्रीराम ने पश्चाताप के लिए अनेक प्रयास किए किंतु अंत होता उन्हें चंद्रशिला में आकर इस पाप से मुक्ति मिली।
तुंगनाथ मन्दिर से जुड़ी एक मान्यता यह भी है, कि माता पार्वती ने विवाह से पूर्व भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।
दक्ष के श्राप से मुक्ति हेतु,चन्द्रमा ने की थी भगवान शिव की आराधना
कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया था, उसके बाद चंद्रशिला में चंद्रमा ने भगवान शिव का ध्यान किया था और भगवान शिव ने ही उन्हें दक्ष के श्राप से मुक्ति दिलाई थी।
कहते हैं कि सतयुग में राजा दक्ष की कई पुत्रियां थी। इनमें सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था एवं अन्य 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से हुआ था। किंतु चंद्रमा का स्नेह केवल रोहिणी के साथ था, राजा दक्ष की 26 पुत्रियों ने इस बात की शिकायत राजा दक्ष से की।
चंद्रशिला को मूनरॉक (Moon Rock) भी कहा जाता है।
(Tungnath temple history in hindi | तुंगनाथ मंदिर का इतिहास)
राजा दक्ष ने चंद्रमा को समझाया लेकिन चंद्रमा नहीं समझे और इस बात से क्रोधित होकर राजा दक्ष ने चंद्रमा को छह रोग का श्राप दे दिया। चंद्रमा को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए अनेक प्रयास किए गए किंतु उन्हें श्राप से मुक्ति केवल भगवान शिव ही दिला सकते थे।
इसलिए चंद्रमा ने चंद्रशिला की इस पहाड़ी पर आकर भगवान शिव की तपस्या की और भगवान से अपने हिसाब से मुक्त किया।
(Tungnath temple history in hindi | तुंगनाथ मंदिर का इतिहास)
तुंगनाथ मन्दिर जाने का सही समय
तुंगनाथ मंदिर जाने के लिए सही समय मई के महीने से नवंबर तक का महीना है। वैसे तो आप किसी भी समय दोगे नाथ मंदिर जा सकते हो लेकिन ठंड के समय में यहां अत्यधिक पर होने के कारण यातायात में समस्या आ सकती है । (Tungnath temple history in hindi | तुंगनाथ मंदिर का इतिहास )
ठंड के मौसम में जब बर्फ पड़ती है तो शिवलिंग को इस मंदिर से चोपता लाया जाता है और गर्मियों में शिवलिंग को फिर से यथा स्थान रख दिया जाता है।
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मन्दिर को मिल सकता है ‘राष्ट्रीय स्मारक’ का दर्जा
तुंगनाथ मंदिर को लेकर कुछ समय पहले यह बात सामने आई है कि मंदिर में झुकाव देखा गया है। एक स्टडी के चलते यह बात सामने आई है कि मंदिर में 506 डिग्री का झुकाव एवं मंदिर के अंदर की मूर्तियों में 10 डिग्री का झुकाव पाया गया है।
तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित मंदिर है इस मंदिर का अत्यधिक महत्व भी है। सूत्रों की मानें तो सरकार मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने की तैयारी में है। ASI के सुपरिटेंडेंट ने बताया कि मंदिर में झुकाव के कारणों का पता लगाने की कोशिश की जा रही है और जैसे ही इस कारण स्पष्ट होता है, तो उसके बाद ही एक निश्चित प्रोग्राम तैयार किया जायेगा।
मंदिर के झुकने को लेकर एक संभावना यह जताई गई है कि मंदिर के नीचे की जमीन के धनिया खिसकने के कारण शायद मंदिर में झुका आया हो। अब वास्तविकता क्या है इसका पता समय आने पर चल जाएगा।
तुंगनाथ मन्दिर के पास के पर्यटक स्थान
चोपता
चोपता की खूबसूरती को देखते हुए, ब्रिटिश कमिश्नर एटकिंसन ने कहा था, जिसने अपने जीवन में चोपता नहीं देखा उसका जीवन व्यर्थ है।
चंद्रशिला शिखर
तुंगनाथ मन्दिर से करीब डेढ़ किलोमीटर की चढाई चढ़ने के बाद चंद्रशिला नाम की चोटी आती है। चंद्रशिला को तुंगनाथ मन्दिर का आखिरी पड़ाव माना जाता है। इसलिए जो श्रद्धालु तुंगनाथ आते हैं वह चंद्रशिला भी जाते हैं।
रावण शिला
देवरिया ताल चोपता
चोपता से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर तुंगनाथ मन्दिर के दक्षिण में देवरिया ताल स्थित है। यह ताल चारों ओर से बांस और बुरांश के घने वन से घिरा है। इस सरोवर में चौकम्भा, नीलकंठ और अन्य चोटियों के प्रतिबिंब साफ दिखाई देते हैं। इस सरोवर का व्यास लगभग 500 मीटर है।
ऊखीमठ चोपता
तुंगनाथ मन्दिर कैसे पहुँचे
तुम भी नाथ मंदिर जाने के लिए आप आपके पास दो रास्ते हैं पहला रास्ता ऋषिकेश से गोपेश्वर होते हुए और दूसरा रास्ता ऋषिकेश से उखीमठ होते हुए।
ऋषिकेश से गोपेश्वर
ऋषिकेश से गोपेश्वर जाने के लिए आप बस कर बस सेवा ले सकते हैं इसके अलावा आप जीत या टैक्सी भी बुक करा सकते हैं।
ऋषिकेश से ऊखीमठ
ऋषिकेश से ऊखीमठ जाने के लिए भी आप बस जीप या टैक्सी द्वारा जा सकते हैं।
उम्मीद है, दोस्तों तुंगनाथ मंदिर के विषय में आपको यह अर्टिकाल “तुंगनाथ मन्दिर का इतिहास (Tungnath temple history in hindi)” पसंद आया होगा।
FAQ’s
तुंगनाथ मन्दिर कहाँ स्थित है?
तुंगनाथ मन्दिर कहाँ स्थित है?
तुंगनाथ मन्दिर कब खुलता है?
तुंगनाथ मन्दिर कब खुलता है?
तुंगनाथ मन्दिर कैसे जाएं?
तुंगनाथ मन्दिर जाने के लिए आपको चोपता पहुँचना होगा, जहाँ से तुंगनाथ की दूरी 3 किलोमीटर है। तुंगनाथ जाने के लिए आप ऋषिकेश से गोपेश्वर या फिर ऊखीमठ होते हुए जाना होगा।
तुंगनाथ मन्दिर की केदारनाथ से दूरी कितनी है?
तुंगनाथ मन्दिर केदारनाथ से 88 किलोमीटर दूर है।
तुंगनाथ मन्दिर में किसकी पूजा होती है?
तुंगनाथ मन्दिर में भगवान शिव की बाहों ( भुजाओं) की पूजा होती है।
तुंगनाथ मन्दिर की ऊँचाई कितनी है ?
तुंगनाथ मन्दिर की ऊँचाई 3640 मीटर है
image sources : wikipedia, euttranchal.com
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