Rakshabandhan 2023: 800 साल बाद भी नहीं मनाया जाता रक्षाबंधन का त्यौहार, मानते हैं अशुभ दिन | These People do not celebrate Rakshabandhan

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हमारा देश भारत वर्ष त्यौहारों का देश है, जहां हर महीने कोई ना कोई उत्सव या त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हर एक उत्सव और त्यौहार का अपना एक इतिहास और परंपरा रही है। और ऐसा ही एक त्यौहार है रक्षाबंधन (Rakshabandhan 2023)।

एक ओर जहाँ पूरा देश रक्षाबंधन का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाता है वहीं दूसरी ओर हमारे देश में कुछ ऐसे गाँव भी हैं, जहाँ रक्षा बंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाता। और ऐसा सालों से होता आ रहा है।

में भाई बहन के विश्वास और रक्षा के प्रतीक चिन्ह के रूप में मनाया जाने वाला यह त्यौहार आज से नहीं बल्कि सदियों से मनाया जा रहा है।

आज किस आर्टिकल में हम आपको ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कई साल बीत गए लेकिन वहां रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाता। तो आईए जानते हैं ऐसे कौन से स्थान है जहां रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाता।

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Rakshabandhan 2023 (People who do not celebrate this festival)

Rakshabandhan 2023
Rakshabandhan 2023 , image source : hindu bhagwan

राजस्थान का पाली गांव

जहां पूरे देश में भाई बहनों के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन को बड़े हर्ष के साथ मनाया जाता है ,वहीं राजस्थान के गांव पाली में पालीवाल समाज रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाता । इस दिन को यहां के लोग कल दिन मानते हैं ।

पाली गांव में पालीवाल ब्राह्मण निवास करते थे यह लोग रक्षाबंधन के दिन अपने पूर्वजों को तर्पण देते है। यह दिन पालीवाल ब्राह्मणों के लिए त्याग और बलिदान का दिन है ।इसीलिए ये लोग रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते हैं।

यहां के लोग बताते हैं कि लगभग 730 साल पहले यहां मुगल शासक मोहम्मद गजनबी ने आक्रमण किया और गोवंश को मारकर उनके टुकड़ों को तालाब में डाल दिया। इसके बाद श्रावणी पूर्णिमा के दिन यहां के पालीवाल ब्राह्मण समाज ने यहां का त्याग कर प्रतिज्ञा लिखी हुई यहां का पानी भी नहीं पियेंगे

इस दिन को यहाँ के लोग बलिदान एवं एकता दिवस के रूप में मनाते हैं एवं अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं। और सर्दियों से यहां के लोग इस परंपरा को निभाते हुए अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं।

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उत्तर प्रदेश का सुराना गांव

गाजियाबाद से 30 किलोमीटर दूर मुरादनगर के गांव सुराना में आज भी लोग रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं। लगभग 800 सालों से यहां रक्षाबंधन का कोई भी त्यौहार नहीं मनाया गया।

इस साल पहले रक्षाबंधन के दिन ही इस गाँव में मोहम्मद गौरी ने आक्रमण किया था जिसमें इस गांव के कई लोग मारे गये थे। तब से इस गाँव के लोग रक्षाबंधन को काला दिन मानते हैं। इस गाँव में सोन सिंह ने हिण्डन नदी के किनारे अपना ठिकाना बनाया था। सोहन सिंह राजा पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। सोम सिंह को ढूंढते हुए मोहम्मद गौरी यहां आ पहुंचे।

मोहम्मद गौरी ने सुराना गांव के लोगों पर हाथियों से हमला करवा दिया और हाथियों के पैरों तले यहां के लोग कुचल दिए गए। इसके बाद से लोगों ने रक्षाबंधन का त्योहार मनाना छोड़ दिया। यहां के लोगों का मानना है कि इस दिन को श्राप लगा हुआ है और रक्षाबंधन का त्योहार मनाना इस गांव के लिए परेशानियाँ पैदा करता है।

गांव के बुजुर्गों का कहना है कि कई बार यहां नहीं पीढ़ी द्वारा रक्षाबंधन को मनाने की कोशिश की गई तो परिवार में अचानक किसी की मौत हो गई और एक अन्य परिवार में लोगों की तबीयत खराब होने लगी।

इसके बाद यहां के नई पीढ़ी को बुजुर्गों द्वारा समझाया गया और कभी रक्षाबंधन का त्योहार ना मानने के लिए कहा गया

उत्तर प्रदेश के बेनीपुर चक गांव में लगभग 300 सालों से नहीं मनाया गया रक्षाबंधन का त्यौहार

उत्तर प्रदेश में संभाल के बेनीपुर चक गांव में लगभग 300 सालों से यहां सभी भाइयों की कलाई सूनी ही रहती है। यहां के लोगों का कहना है कि कई समय पहले यहां रक्षाबंधन के त्यौहार के दिन ही बहनों ने भाई से कुछ ऐसा मांग लिया था जिसके बाद से यहां कभी रक्षाबंधन नहीं मनाया गया।

जहां एक और पूरा देश परंपरागत तरीके से रक्षाबंधन का त्योहार मानता है वहीं दूसरी और इस गांव में लोग रक्षाबंधन के त्योहार से डरते हैं।

कहा जाता है कि अलीगढ़ जिले के सेमरई गांव में में यादव लोग जमीदार हुआ करते थे साथिया ठाकुरों का भी निवास हुआ करता था। ठाकुर परिवार में कोई बेटा नहीं था जिसके कारण ठाकुर परिवार की बेटियां यादवों के बेटों पर राखी बांध करती थी।

लेकिन एक समय ऐसा आया जब रक्षाबंधन पर ठाकुर की बेटी ने यादवों से राखी के उपहार में गांव की जमींदारी मांग ली इस पर यादवों ने उन्हें अपनी जिम्मेदारी सौंप दी लेकिन गांव छोड़कर चले गए। बाद मैं ठाकुर बहनों ने मजाक कहकर वापस गांव चलने को कहा लेकिन इन्होंने वापस जाने से इनकार कर दिया और बेनीपुर गांव में आकर रहने लगे।

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