गीतांजलि : रविंद्र नाथ टैगोर | Geetanjali by Ravindra Nath Tagore pdf in Hindi

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गीतांजलि (Geetanjali by Ravindra Nath Tagore pdf in hindi, Geetanjali in hindi, Geetanjali by Ravindra Nath Tagore)

1913 में उनकी काव्यरचना ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार मिला । रविंद्र नाथ टैगोर ने गीतांजलि को बंगाली भाषा में लिखा था और उसका हिंदी में अनुवाद डॉ. डोमन साहु ‘समीर’ ने किया है (Geetanjali by Ravindra Nath Tagore pdf in hindi)

रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था  केवल 8 वर्ष की उम्र से ही रविंद्र नाथ टैगोर ने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। रवींद्रनाथ टैगोर एक चित्रकार, दार्शनिक,संगीतकार, उपन्यासकार तथा एक नाटककार भी थे

रविंद्र नाथ टैगोर को “गुरुदेव” के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने 2 देशों (भारत, बांग्ला देश) के लिए राष्ट्र गान भी लिखा। (Geetanjali by Ravindra Nath Tagore in hindi, Geetanjali ki kavitayen, Geetanjali in hindi)

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गीतांजलि के बारे में

गीतांजलि एक कविताओं का संग्रह है, जो ‘गीत‘ और ‘अंजलि’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “गीतों का उपहार” गीतांजलि को 1910 में भारत में प्रकाशित किया गया था।

गीतांजलि में कुल 157 गीतों का संकलन है। इसमें कोई भी गद्य रचना शामिल नही है।

सितम्बर 1910 में रविंद्र नाथ टैगोर का गीतों का यह संकलन “गीतांजलि” के नाम से इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा प्रकाशित किया गया।


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गीतांजलि इंग्लिश अनुवाद के लिए मिला नोबेल पुरुस्कार

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टैगोर ने अपनी एक यात्रा के दौरान गीतांजलि का अंग्रेजी में गद्य अनुवाद किया था ,जिसे 1912 में ‘विलियम बटलर येट्स’ द्वारा एक प्रस्तावना के साथ प्रकाशित किया गया था । और रविंद्र नाथ टैगोर को साहित्य के लिए जो नोबेल पुरुस्कार मिला वह इसी अनुवादित गद्य की कुछ कविताओं के लिए मिला। (Geetanjali by Ravindra Nath Tagore pdf in hindi)

गीतांजलि की कवितायेँ हिंदी में

मेरा मस्तक अपनी चरण धूल तले नत कर दो

मेरा मस्तक अपनी चरण धूल तले नत कर दो 
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो। 

अपने मिथ्या गौरव की रक्षा करता
मैं अपना ही अपमान करता रहा, 
अपने ही घेरे का चक्कर काट - काट
मैं प्रतिपल बेदम बेकल होता रहा, 
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो। 

अपने कामो में मैं अपने प्रचार से रहूँ दूर
मेरे जीवन द्वारा तुम अपनी इच्छा पूरी करो, हे पूर्ण! 

मैं याचक हूँ तुम्हारी परम शांति का
अपने प्राणो में तुम्हारी परम कांति का, 
अपने हृदय- कमल दल में ओट मुझे दे दो, 
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रु जल में डुबो दो। 

विपदा से मेरी रक्षा करना

विपदा से मेरी रक्षा करना 
मेरी यह प्रार्थना नहीं, 
विपदा से मैं डरूँ नहीं, इतना ही करना। 

दुख - ताप से व्यथित चित्त को
भले न दे सको सांत्वना
मैं दुख पर पा सकूँ जय। 

भले मेरी सहायता ना जुटे
अपना बल कभी न टूटे, 
जग में उठाता रहा क्षति
और पाई सिर्फ वंचना
तो भी मन में कभी न मानूँ क्षय। 

तुम मेरी रक्षा करना
यह मेरी नहीं प्रार्थना, 
पार हो सकूँ बस इतनी शक्ति चाहूँ। 

मेरा भार हल्का कर
भले न दे सको सांत्वना
बोझ वहन कर सकूँ, चाहूँ इतना ही। 

सुख भरे दिनों में सिर झुकाए
तुम्हारा मुख मैं पहचान लूँगा,
दुखभरी रातों में समस्त धरा
जिस दिन करे वंचना
कभी ना करूँ, मैं तुम पर संशय। 

कितने अनजानों से तुमने करा दिया मेरा परिचय

कितने अनजानों से तुमने करा दिय मेरा परिचय
कितने पराए घरों में दिया मुझे आश्रय।
बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।
अपना पुराना घर छोड़ ,निकलता हूँ जब
चिंता में बेहाल कि पता नहीं क्या हो अब,
हर नवीन में तुम्हीं पुरातन
यह बात भूल जाता हूँ।

बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।

जीवन-मरण में, अखिल भुवन में
मुझे जब भी जहाँ गहोगे,
ओ, चिरजनम के परिचित प्रिय!
तुम्हीं सबसे मिलाओगे।

कोई नहीं पराया तुम्हें जान लेने पर
नहीं कोई मनाही, नहीं कोई डर
सबको साथ मिला कर जाग रहे तुम-
मैं तुम्हें देख पाऊँ निरन्तर।

बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।

तेरी कृपा

तूने मुझे अनन्त बनाया है, 
ऐसी तेरी लीला है, तू इस भंगुर-पात्र (शरीर ) को 
वार वार खाली करता है 
और नवजीवन से उसे सदा भरता रहता है ।

तू ने इस वॉस की नन्हीं सी बाँसुरी को
 पहाड़ियों और घाटियों पर फिराया है 

और तूने इसके द्वारा ऐसी मधुर तानें निकाली है, जो नित्य नई हैं

मेरा छोटा सा हृदय, 
तेरे हाथों के अमृतमय स्पर्श से 
अपने आनन्द की सीमा को खो देता है ।

और फिर उसमें ऐसे उद्गार उठते हैं जिनका बर्णन नहीं हो सकता ।

तेरे अपरिमित दानों की वर्षा 
मेरे इन क्षुद्र हाथों पर  होती है ,
युग के युग बीतते जाते हैं 

और तू उन्हें बराबर वर्षाता जाता है और 
यहाँ भरने के लिये स्थान शेष ही रहता है..

गान महिमा

जब तू मुझे गाने की आज्ञा  देता  है
 तो प्रतीत होता हैं कि मानों गर्व से मेरा हृदय टूटना चाहता है. 
मैं तेरे बुन्न की ओर निहारता हूँ, 
और मेरी आखो मे आँसू या जाते हैं।

मेरे जीवन में जो कुछ कठोर और अनमिल है 
वह मधुर स्वरावलि में परिणत हो जाता है; 
और मेरी आराधना उस प्रसन्न पक्षी की तरह 
अपने पर फैलाती है 
जो उड़ कर सिन्धु पार कर रहा हो ।

मैं जानता हूँ कि तुझे मेरा गांना अच्छा लगता है. 
मैं जानता हूँ कि तेरे सम्मुख मैं गायक ही के रूप में आता हूँ।

तेरे जिन चरणों तक पहुॅचने की आकांशा भी मैं नहीं कर सकता था, 
उन्हें मैं अपने गीतों के दूर तक फैले हुए परों के किनारे से छू लेता हूँ।

Image source : wikipedia

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