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मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ियों में से एक माने जाते हैं। मेजर ध्यानचंद, भारतीय हॉकी के एक अद्वितीय और प्रमुख खिलाड़ी रहे हैं। उन्होंने अपने करियर में अनगिनत सफलताएँ हासिल की और भारतीय हॉकी को विश्व मंच पर मान-सम्मान दिलाया ।
उन्होंने भारत को हॉकी में अनगिनत सफलताएं दिलाई और भारतीय हॉकी को दुनियाभर में पहचान दिलाई। इसीलिए हमारे देश में उनके जन्म दिवस को “राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
उन्होंने ओलंपिक खेलों में भारत को 3 बार गोल्ड मेडल दिलाया (1928, 1932, और 1936)। ध्यानचंद का जीवन संघर्षपूर्ण रहा, लेकिन उनका आदर्शवादी और समर्पित खेलने का तरीका उन्हें महान बनाता है। उन्होंने खुद को हॉकी के माध्यम से देश सेवा में समर्पित किया और बच्चों को खेल के महत्व को समझाने का प्रयास किया।
उनके खेलने का तरीका, कौशल और दृढ़ संकल्प ने उन्हें “हॉकी का जादूगर” बना दिया। उनकी मान्यता हॉकी के क्षेत्र में अद्वितीय है और उन्हें भारतीय खेल के इतिहास में गर्वपूर्ण स्थान पर रखा जाता है।
आईए जानते हैं मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़ी पूरी जानकारी – मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय (Major dhyanchand biography in hindi) ,मेजर ध्यानचंद का परिवार ( Major dhyanchand family) शिक्षा एवं हॉकी में मेजर ध्यानचंद का योगदान
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मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय | Major Dhyanchand biography in hindi
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मेजर ध्यानचंद को क्रिकेट में ‘ब्रैडमैन‘ और फुटबॉल में ‘पेले‘ के समान महान खिलाड़ी समान माना जाता है।
कहा जाता है कि जब मेजर ध्यानचंद हॉकी खेलते थे तो ऐसा लगता था कि मानो गेंद उनकी हॉकी स्टिक से चिपक गई हो। कई बार तो इस संदेह के चलते उनकी हॉकी स्टिक का निरीक्षण भी किया गया।
मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़े कई ऐसे पहलू है जिनके विषय में हमें जानकारी नहीं है। तो आईए जानते हैं मेजर ध्यानचंद के जीवन परिचय (Major Dhyanchand biography in hindi | मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय) के साथ साथ उनके जीवन से जुड़े अनुसुने पहलुओं के बारे में।
- मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय | Major Dhyanchand biography in hindi
- मेजर ध्यानचंद महत्वपूर्ण बिंदु (Major Dhyanchand biography in hindi)
- मेजर ध्यानचंद का करियर (Major dhyanchand Career)
- मेजर ध्यानचंद के करियर से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु
- हॉकी खिलाड़ी के रूप में मेजर ध्यानचंद की शुरुआत
- अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के तौर पर मेजर ध्यानचंद का करियर
- हिटलर भी थे मेजर ध्यान चंद की हॉकी के कायल
- ध्यानचंद और ब्रेडमैन
- हॉलैंड के मैच में मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया।
- ध्यानचंद के नाम के पीछे चंद कैसे जुड़ा?
- ओलंपिक खेलों में मेजर ध्यानचंद का योगदान
- एम्सटर्डम ओलंपिक (1928)
- लॉस एंजिल्स ओलंपिक (1932)
- बर्लिन ओलंपिक (1936)
- मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा ‘गोल’ (Major Dhyanchand Autobiography ‘Goal’
- मेजर ध्यानचंद पुरस्कार एव सम्मान (Major Dhyanchand Awards and Honours)
- मेजर ध्यानचंद के अंतिम शब्द :
- मेजर ध्यानचंद की मृत्यु (Major Dhyanchand death)
मेजर ध्यानचंद महत्वपूर्ण बिंदु (Major Dhyanchand biography in hindi)
नाम | मेजर ध्यानचंद |
जन्म | 29 अगस्त 1905 |
जन्म स्थान | प्रयागराज , उत्तर प्रदेश |
असली नाम | ध्यान सिंह |
माता का नाम | शारदा सिंह |
पिता का नाम | समेश्वर दत्त सिंह |
धर्म | हिंदू |
जाति | राजपूत |
उम्र | 72 साल |
पेशा | प्रसिद्ध हॉकी प्लेयर |
व्यवसाय | ब्रिटिश भारतीय सेना और भारतीय सेना |
यूनिट | पंजाब रेजिमेंट |
वजन | 70 kg |
हाईट | 5 फिट 7 इंच |
प्रसिद्ध नाम | ‘ हॉकी का जादूगर’ |
मृत्यु (death) | 3 दिसंबर,1979 |
Award | ‘पद्म भूषण’ |
मेजर ध्यानचंद का जन्म
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के वर्तमान प्रयागराज ( इलाहाबाद) में हुआ था। मेजर मेजर ध्यानचंद ने हॉकी के क्षेत्र में भारत का नाम पूरे विश्व में गौरवान्वित किया। और उनके जन्मदिवस के अवसर को पूरे भारत देश में ” राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
मेजर ध्यानचंद का परिवार (Major Dhyanchand Family)
मेजर ध्यानचंद के पिता का नाम रामेश्वर सिंह कुशवाहा और माता का नाम शारदा सिंह कुशवाहा था। ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार थे एवं उनकी माता शारदा सिंह एक ग्रहणी थी।
मेजर ध्यानचंद के दो भाई और तीन बहने थी। उनके भाइयों के नाम रूप सिंह कुशवाहा एवं मूल सिंह कुशवाहा था। रूप सिंह इन्ही की तरह एक अच्छे हॉकी खिलाड़ी थे एवं मूल सिंह एक हवलदार थे।
Major dhyanchand biography in hindi | मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय
मेजर ध्यानचंद की शिक्षा (Major Dhyanchand Education)
ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश आर्मी में सूबेदार थे और कुछ समय बाद ही उनके तबादले नई-नई जगह पर होते रहते थे। इस कारण मेजर ध्यानचंद ने अपनी पढ़ाई आधे में ही छोड़ दी थी।
मेजर ध्यानचंद का विवाह (Major Dhyanchand Married Life)
मेजर ध्यानचंद का विवाह 1936 में जानकी देवी के साथ हुआ था। मेजर ध्यानचंद और जानकी देवी के चार पुत्र हुए। उनके पुत्रों का नाम बृजमोहन सिंह, सोहन सिंह कुशवाहा, अशोक सिंह कुशवाहा और राजकुमार कुशवाहा है।
उनके बेटे अशोक सिंह कुशवाहा भी हॉकी के प्लेयर है।
मेजर ध्यानचंद का करियर (Major dhyanchand Career)
मेजर ध्यान चंद ने जब आर्मी ज्वाइन की तो उनकी उम्र केवल 16 साल की थी। ध्यान चंद पंजाब रेजीमेंट से सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे । बचपन में उन्हें हॉकी में कोई रुचि नहीं थी। इसके बाद भी जब उन्होंने आर्मी जॉइन कि उस समय भी उन्हें हॉकी कोई खास पसंद नहीं थी।
हॉकी में उनके खेल से प्रभावित होकर ही उन्हें आर्मी जॉइन करने की सलाह दी गई। और धीरे-धीरे परिस्थितियों ऐसी बनी कि मेजर ध्यानचंद ने हॉकी के क्षेत्र में पूरे विश्व में अपना परचम लहराया।
मेजर ध्यानचंद के करियर से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु
- मेजर ध्यानचंद 1922 में पंजाब रेजीमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे।
- इसके बाद 1927 में मेजर ध्यानचंद को लांस नायक पद पर पदोन्नति किया गया।
- 1932 में मेजर ध्यानचंद को नायक पद पर नियुक्त किया गया।
- 1937 में ध्यानचंद को सूबेदार नियुक्त किया गया । उसे समय मेजर ध्यानचंद हॉकी टीम के कप्तान भी थे।
- द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बाद सन 1943 में मेजर ध्यानचंद को लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया।
- भारत के स्वतंत्र होने के बाद 1948 में मेजर ध्यानचंद कैप्टन के पद पर नियुक्त किए गए।
- मेजर ध्यान चंद 29 अगस्त 1956 को 34 साल देश की सेवा करने के बाद ,भारतीय सेना से लेफ्टिनेंट के पद पर सेवानिवृत हुए ।
- ध्यानचंद ने सेवा निवृत्ति के बाद माउंट आबू राजस्थान और राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला में मुख्य कोच के पद पर कार्य किया।
(मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय| Major dhyanchand biography in hindi)
हॉकी खिलाड़ी के रूप में मेजर ध्यानचंद की शुरुआत
मेजर ध्यानचंद को बचपन से हॉकी में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। उन्हें रेसलिंग में दिलचस्पी थी। वह कभी कभार अपने दोस्तों के साथ हॉकी खेल लिया करते थे। एक बार उनके पिता उन्हें आर्मी का हॉकी मैच दिखाने के लिए लेकर गए। ध्यानचंद ने देखा कि एक टीम 2 गोल से हार रही है।
ध्यानचंद अपने पिता से उसे हटती हुई टीम के पक्ष से खेलने को की इच्छा जताई। और ध्यानचंद को उसे टीम से खेलने का मौका दिया गया। ध्यानचंद ने चार गोल किए और उस हारती हुई टीम को जिता दिया।
इसके बाद ध्यानचंद को आर्मी में सूबेदार मेजर तिवारी ने हॉकी खेल से जुड़ा बेसिक ज्ञान दिया और उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया।
ध्यानचंद के कोच का नाम पंकज गुप्ता था कहते हैं कि उन्होंने ही कहा था कि एक दिन मेजर ध्यानचंद का नाम पूरे विश्व में चांद की तरह चमकेगा। और उसके बाद मेजर ध्यानचंद के नाम पर चंद जोड़ा गया।
1922 से लेकर 1926 तक सेना में होने वाली हॉकी प्रतियोगिताओं में ही भाग लिया। लेकिन जैसे-जैसे उनकी प्रतिभा सबके सामने आई गई उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हॉकी खेलने का मौका मिला।
अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के तौर पर मेजर ध्यानचंद का करियर
- साल 1925 में पहली बार मेजर ध्यानचंद ने नेशनल हॉकी टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था। इस टूर्नामेंट में ध्यान चंद ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दी, जिसके फल स्वरूप उन्हें इंटरनेशनल टीम में खेलने का मौका मिला। बस फिर क्या था ध्यानचंद ने अपने खेल से देशवासियों का दिल जीत लिया।
- 1926 में पहली बार मेजर ध्यानचंद ने न्यूजीलैंड में मैच खेला।
- न्यूजीलैंड के एक मैच में भारतीय हॉकी टीम ने 20 गोल किए थे जिसमें की 10 गोल मेजर ध्यानचंद द्वारा किए गए थे।
- यहां मेजर ध्यानचंद ने कुल 21 मैच खेले जिनमें 18 माचो में उन्हें जीत हासिल हुई। इन पूरे माचो में मेजर ध्यानचंद ने 192 गोल किए।
हिटलर भी थे मेजर ध्यान चंद की हॉकी के कायल
मेजर ध्यानचंद ने अपने खेल से जर्मनी के तानाशाह हिटलर को भी प्रभावित किया था। हिटलर मेजर ध्यानचंद के खेल से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ध्यानचंद के आगे जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव रखा जिसके बदले में उन्हें सेवा में एक अच्छा पद भी ऑफर किया।
लेकिन मेजर ध्यानचंद ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और अपने देश के लिए ही हॉकी खेलने पसंद किया।
ध्यानचंद और ब्रेडमैन
मेजर ध्यानचंद के खेल से हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर ब्रैडमैन भी उनके प्रशंसक बन गए थे । ब्रैडमैन मेजर ध्यानचंद से उम्र में केवल 3 साल छोटे थे और उनके जन्मदिन मेरा ध्यानचंद से दो दिन पहले यानी 27 अगस्त को मनाया जाता है ।
1935 में भारतीय हॉकी टीम न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थे। भारतीय टीम हॉकी के एक मैच के लिए एडिलेड में थी जहां ब्रैडमैन भी मैच खेलने आए थे। ब्रैडमैन भी तभी ध्यानचंद से मिले थे और उन्होंने ध्यान चंद के खेल को देखकर कहा वह इस तरह से गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं।
ब्रेड मेन ने ध्यानचंद के खेल को देखकर कहा था -" मेजर ध्यानचंद इस तरह गोल करते हैं जैसे क्रिकेट के हर गेम में रन कर रहे हो"।
ध्यानचंद ने इस दौर में 48 माचो में 201 गोल किए थे। इसके बाद मेजर ध्यानचंद ने यह भी कहा था कि यह हॉकी खिलाड़ी ने बनाया या बल्लेबाज ने।
हॉलैंड के मैच में मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया।
एक बार हॉलैंड में जब हॉकी में मैच खेला जा रहा था तो मेजर ध्यानचंद ने भारतीय टीम में रहते हुए अपने स्टेट से एक के बाद एक गोल करना शुरू कर दिया। जो देखकर सब अचंभित हो गए। मेजर ध्यानचंद द्वारा लगातार एक के बाद एक गोल करना हर किसी को अविश्वसनीय प्रतीत हो रहा था।
उसके बाद यह अफवाह फैल गई कि उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक लगी है जिससे उनकी गेंद हॉकी स्टिक पर ही चिपक गई है।
ध्यानचंद के नाम के पीछे चंद कैसे जुड़ा?
यह तो हम सभी जानते हैं कि ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था। तो अब सवाल यह है कि उनके नाम के पीछे चांद कैसे लगा।
दरअसल मेजर ध्यानचंद हॉकी बहुत जुनून के साथ खेलते थे। मेजर ध्यानचंद को जब भी हॉकी की प्रैक्टिस करनी होती थी तो वह रात के समय चांद की रोशनी में हॉकी की प्रेक्टिस किया करते थे। इसके कारण उनके दोस्त उन्हें चाँद कहकर बुलाते थे।
बस इसी कारण से उनके नाम के पीछे ‘चंद’ शब्द जुड़ गया।
ओलंपिक खेलों में मेजर ध्यानचंद का योगदान
उनकी खिलाड़ी कौशल्यता और दृढ़ संकल्पना ने भारत को पहली बार ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल दिलाया। ध्यानचंद की खिलाड़ी प्रतिबद्धता, समर्पण और कठिनाईयों को पार करने की क्षमता उन्हें अनूठे बनाते थे। उनके खेल की गतिविधियाँ उनके समय के साथ ही बदली और उन्होंने हॉकी में तकनीकी नवाचार किए। उनकी मानवीय गुणवत्ताएँ और नेतृत्व कौशल उन्हें एक उत्कृष्ट खिलाड़ी बनाते हैं।
मेजर ध्यानचंद का समय भारत का “हॉकी का स्वर्ण युग” कहलाता था।
पहला गोल्ड मेडल | 1928, एम्सटर्डम |
दूसरा गोल्ड मेडल | 1932, लॉस एंजिल्स |
तीसरा गोल्ड मेडल | 1936, बर्लिन ओलंपिक |
- ध्यानचंद का पहला महत्वपूर्ण प्रयास 1928 में हुआ, जब उन्होंने अपनी टीम के साथ एम्सटर्डम ओलंपिक में भाग लिया और भारत को ओलंपिक में पहला स्वर्ण पदक दिलाया।
- इसके बाद, उन्होंने ओलंपिक्स में भारतीय हॉकी टीम के 2 और गोल्ड मेडल जीते, जिनमें 1932 (लॉस एंजिल्स), 1936 (बर्लिन) और 1948 (लंदन) शामिल हैं।
एम्सटर्डम ओलंपिक (1928)
भारतीय टीम ने पहली बार 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक खेल में भाग लिया था। यहां खेले गए पहले सभी मुकाबले में भारतीय टीम ने जीत हासिल की। भारतीय हॉकी टीम ने ऑस्ट्रिया को 6-0 से, बेल्जियम को 9-0 से,डेनमार्क को 5-0 से और स्विटजरलैंड को 6-0 से हराया।
फाइनल मैच में भारतीय टीम ने हॉलैंड को 3-0 से हराकर हॉकी में पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
लॉस एंजिल्स ओलंपिक (1932)
लॉस एंजिल्स में भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में दूसरा स्वर्ण पदक हासिल किया। 1932 ओलंपिक खेल में ध्यानचंद ने 262 में से 101 गोल्ड स्वयं किये । इस समय मेजर ध्यानचंद प्लांस नायक से नायक के पद पर नियुक्त हो गए थे।
उसे समय मेजर ध्यानचंद सेंटर फारवर्ड में खेलते थे। फाइनल मैच में यहां भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था।
उस समय के एक अमेरिकी समाचार पत्र ने लिखा था कि – भारतीय हॉकी टीम पूर्व से आया एक तूफान थी जिसने अपन वेग से अमेरिकी टीम के 11 खिलाड़ियों को कुचल दिया।
बर्लिन ओलंपिक (1936)
बर्लिन के ओलंपिक खेल में मेजर ध्यानचंद को हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया। तिनके कप्तान बनने पर मेजर ध्यानचंद ने कहा था कि मुझे उम्मीद नहीं थी कि मुझे कभी हॉकी टीम का कप्तान चुना जाएगा।
बर्लिन में भारत का फाइनल मुकाबला जर्मनी के साथ होना था और अभ्यास मैच में जर्मनी ने भारत को हरा दिया था जिसे ध्यान चंद काफी उदास थे
फाइनल मैच 14 अगस्त के दिन खेला जाना था लेकिन उसे दिन बारिश होने की वजह से यह मैच एक दिन टल गया और 15 अगस्त के दिन जर्मनी और भारत के बीच फाइनल मुकाबला खेला गया।
14 अगस्त के दिन इतनी बारिश हुई थी कि मैदान में पूरा पानी भर गया था इस वजह से खेल को एक दिन स्थगित कर दिया गया था । मैदान किला होने के कारण उसे पर हॉकी खेलने काफी मुश्किल था । तभी भारतीय टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता को एक तरकीब सूची और उन्होंने अपने खिलाड़ियों को ड्रेसिंग रूम रूम में ले जाकर सामने तिरंगे झंडे को दिखाया और खिलाड़ियों से कहा कि अब इसकी लाज तुम्हारे हाथ में है ।
सभी खिलाड़ियों ने तिरंगे को सलाम किया और मैदान में उतर गए और इस तरह से प्रदर्शन किया कि जर्मनी की टीम को 8-1 से हराया और तिरंगे का मान रखा।
मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय| Major Dhyanchand biography in hindi
मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा ‘गोल’ (Major Dhyanchand Autobiography ‘Goal’
मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा का नाम “गोल” है। जिसका प्रकाशन सन् 1952 में स्पोर्ट एंड पास टाइम मद्रास हाल, चेन्नई द्वारा किया गया था।
मेजर ध्यानचंद पुरस्कार एव सम्मान (Major Dhyanchand Awards and Honours)
1956 में मेजर ध्यानचंद को भारत के प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘पद्मभूषण‘ से सम्मानित किया गया।
मेजर ध्यानचंद के जन्म दिवस 29 अगस्त को पूरे देश में “राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
कई समय से मेजर ध्यानचंद के योगदान को देखते हुए उन्हें “भारत रत्न” देने की मांग भी की जा रही है।
लंदन के एक इंडियन जिमखाना क्लब में स्थित हॉकी के एक पिच का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखा गया है।
वियना में मेजर ध्यानचंद की एक मूर्ति स्थापित की गई है जिसमें उनके हाथ में चार हॉकी स्टिक है।
मेजर ध्यानचंद के सम्मान में भारतीय सरकार ने डाक टिकट पर जारी किया था
मेजर ध्यानचंद के सम्मान में भारतीय ओलंपिक संघ ने उन्हें “शताब्दी का खिलाड़ी” कहकर घोषित किया।
मेजर ध्यानचंद के अंतिम शब्द :
मेजर ध्यानचंद ने अपने आखिरी समय में आर्थिक तंगी का भी सामना किया। 74 साल की उम्र में लिवर कैंसर के कारण उनका निधन हो गया था। मेजर ध्यानचंद ने अपने अंतिम समय में अपने बेटे अशोक से कहा था-
" मेरा अंत में एक ही सपना है भारतीय हॉकी टीम फिर एक बार अपने स्वर्णिम युग में पहुंचे भले ही मेरे बूढ़ा शरीर में अब दम नहीं रहा हो लेकिन मैं भारत की हॉकी टीम को सम्मान की स्थिति में देखना चाहता हूं ताकि मैं खुद को जवान महसूस कर सकूं" ।
मेजर ध्यानचंद की मृत्यु (Major Dhyanchand death)
मेजर ध्यानचंद की दिल्ली के AIMS अस्पताल में लीवर कैंसर के कारण 3 दिसंबर 1979 को मृत्यु हो गई ।
ध्यानचंद का योगदान ही उनके खिलाड़ी जीवन के साथ ही भारतीय हॉकी के इतिहास में अमूल्य है। उन्होंने भारतीय हॉकी को विश्व मंच पर पहचान दिलाई और उनका नाम हमेशा स्तुति और सम्मान का पात्र रहेगा। उनकी यादें हमें सदैव याद रहेंगी।
दोस्तों उम्मीद है आपको मेजर ध्यानचंद के विषय में लिखा गया यह आर्टिकल ” Major Dhyanchand biography in hindi” पसंद आई होगी।
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