“मेरी इक्यावन कविताएं” अटल बिहारी वाजपेई | Meri 51 kavitayen by Atal Bihari Vajpayee

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अटल बिहारी वाजपेई द्वारा रचित मेरी इक्यावन कविताएं, “मेरी 51 कविताएं” की पूरी लिस्ट | Meri 51 kavitayen by Atal Bihari Vajpayee , List of “Meri 51 kavitayen” by Atal Bihari Vajpayee

बहुमुखी प्रतिभा के धनी अटल बिहारी वाजपेई की शब्दों पर कितनी अच्छी पकड़ थी, इसका अंदाजा आप उनकी कविताओं और उनके भाषणों के माध्यम से लगा सकते हैं। अटल बिहारी वाजपेई अपनी रचनात्मक शैली के साथ साथ भावों को प्रकट करने का एक अपना अलग ही अंदाज था।

“मेरी इक्यावन कविताएं” (“Meri 51 kavitayen” by atal bihari vajpayee) अटल जी की रचनाओं में काफी प्रसिद्ध है। इस लेख के माध्यम से हम अटल जी की कविताओं का संग्रह -” Meri 51 kavitayen” आपके सामने रख रहे हैं।

Table of Contents
  1. मेरी इक्यावन कविताएं (Meri 51 kavitayen by Atal Bihari Vajpayee)
    1. अमर है गणतंत्र
    2. अमर आग है
    3. आओ मिलकर दिया जलाएं
    4. हो आज सिंधु में ज्वार उठा है
    5. आओ मन की गाठें खोलें
    6. अंतर्द्वंद
    7. अपने ही मन से कुछ बोलें
    8. आओ ! मर्दों नामर्द बनो
    9. आए जिस जिस की हिम्मत हो
    10. आज सिंधु में ज्वार उठा है उनकी याद करें
    11. ऊंचाई
    12. एक बरस बीत गया
    13. कण्ठ कण्ठ में एक राग है
    14. कदम मिलाकर चलना होगा
    15. कोटि चरण बढ़ रहे ध्येय की ओर निरंतर
    16. कौरव कौन, कौन पांडव
    17. गगन में लहराता है भगवा हमारा
    18. गीत नहीं गाता हूं
    19. गीत नया गाता हूं
    20. जम्मू की पुकार
    21. जंग न होने देंगे
    22. जीवन की ढलने लगी सांझ
    23. जीवन बीत चला
    24. झुक नहीं सकते
    25. दूध में दरार पड़ गई
    26. दूर कहीं कोई रोता है
    27. देखो हम बढ़ते ही जाते (Dekho hum badhte hi jate)
    28. नई गांठ लगती( Nayi ganth lagti)
    29. नए मील का पत्थर (Naye meel ka patthar)
    30. न मैं चुप हूं न गाता हूं ( Na mai chup hun na gata hun)
    31. परिचय (Parichay)
    32. पहचान ( Pahchan)
    33. पड़ोसी से (Padoshi se )
    34. पुनः चमकेगा दिनकर (Punh chamkega dinkar)
    35. बबली की दिवाली (Babli ki diwali)
    36. बुलाती तुम्हें मनाली( Bulati tumhe Manali)
    37. मन का संतोष (Man ka Santosh)
    38. मनाली मत जइयो (Manali mat jaiyo)
    39. मातृ पूजा प्रतिबंधित (Matri Pooja pratibandhit)
    40. मैं सोचने लगता हूं (Mai sochne lagta hun)
    41. मोड़ पर ( mod par)
    42. मौत से ठन गई (Maut se than gyi)
    43. यक्ष प्रश्न (Yaksh prashn)
    44. राह कौन सी जाऊं मैं (Raah kaun si jaun main)
    45. रोते रोते रात सो गई (Rote rote rat so gyi)
    46. सत्ता (Satta)
    47. सपना टूट गया (Sapna toot gya)
    48. स्वंतत्रता दिवस की पुकार (Swantarta ki pukar)
    49. हरी हरी दूब पर (Hari hari doob par)
    50. हिरोशिमा की पीड़ा (Hiroshima ki pida)
    51. क्षमा याचना (Kshma yachna)

मेरी इक्यावन कविताएं (Meri 51 kavitayen by Atal Bihari Vajpayee)

Meri 51 kavitayen by atal bihari vajpayee
अटल बिहारी वाजपेई
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अमर है गणतंत्र

राजपथ पर भीड़, जनपथ पड़ा सूना,
पलटनों का मार्च, होता शोर दूना।
शोर से डूबे हुए स्वाधीनता के स्वर,
रुद्ध वाणी, लेखनी जड़, कसमसाता डर।
भयातांकित भीड़, जन अधिकार वंचित,
बन्द न्याय कपाट, सत्ता अमर्यादित।
लोक का क्षय, व्यक्ति का जयकार होता,
स्वतंत्रता का स्वप्न रावी तीर रोता।
रक्त के आँसू बहाने को विवश गणतंत्र,
राजमद ने रौंद डाले मुक्ति के शुभ मंत्र।
क्या इसी दिन के लिए पूर्वज हुए बलिदान?
पीढ़ियां जूझीं, सदियों चला अग्नि-स्नान?
स्वतंत्रता के दूसरे संघर्ष का घननाद,
होलिका आपात् की फिर माँगती प्रह्लाद।
अमर है गणतंत्र, कारा के खुलेंगे द्वार,
पुत्र अमृत के, न विष से मान सकते हार।

अमर आग है

कोटि-कोटि आकुल हृदयों में
सुलग रही है जो चिनगारी,
अमर आग है, अमर आग है।

उत्तर दिशि में अजित दुर्ग सा,
जागरूक प्रहरी युग-युग का,
मूर्तिमन्त स्थैर्य, धीरता की प्रतिमा सा,
अटल अडिग नगपति विशाल है।


नभ की छाती को छूता सा,
कीर्ति-पुंज सा,
दिव्य दीपकों के प्रकाश में-
झिलमिल झिलमिल
ज्योतित मां का पूज्य भाल है।

कौन कह रहा उसे हिमालय?
वह तो हिमावृत्त ज्वालागिरि,
अणु-अणु, कण-कण, गह्वर-कन्दर,
गुंजित ध्वनित कर रहा अब तक
डिम-डिम डमरू का भैरव स्वर ।
गौरीशंकर के गिरि गह्वर
शैल-शिखर, निर्झर, वन-उपवन,
तरु तृण दीपित ।

शंकर के तीसरे नयन की-
प्रलय-वह्नि से जगमग ज्योतित।
जिसको छू कर,
क्षण भर ही में
काम रह गया था मुट्ठी भर ।

यही आग ले प्रतिदिन प्राची
अपना अरुण सुहाग सजाती,
और प्रखर दिनकर की,
कंचन काया,
इसी आग में पल कर
निशि-निशि, दिन-दिन,
जल-जल, प्रतिपल,
सृष्टि-प्रलय-पर्यन्त तमावृत
जगती को रास्ता दिखाती।

यही आग ले हिन्द महासागर की
छाती है धधकाती।
लहर-लहर प्रज्वाल लपट बन
पूर्व-पश्चिमी घाटों को छू,
सदियों की हतभाग्य निशा में
सोये शिलाखण्ड सुलगाती।

नयन-नयन में यही आग ले,
कंठ-कंठ में प्रलय-राग ले,
अब तक हिन्दुस्तान जिया है।

इसी आग की दिव्य विभा में,
सप्त-सिंधु के कल कछार पर,
सुर-सरिता की धवल धार पर
तीर-तटों पर,
पर्णकुटी में, पर्णासन पर,
कोटि-कोटि ऋषियों-मुनियों ने
दिव्य ज्ञान का सोम पिया था।

जिसका कुछ उच्छिष्ट मात्र
बर्बर पश्चिम ने,
दया दान सा,
निज जीवन को सफल मान कर,
कर पसार कर,
सिर-आंखों पर धार लिया था।

वेद-वेद के मंत्र-मंत्र में,
मंत्र-मंत्र की पंक्ति-पंक्ति में,
पंक्ति-पंक्ति के शब्द-शब्द में,
शब्द-शब्द के अक्षर स्वर में,
दिव्य ज्ञान-आलोक प्रदीपित,
सत्यं, शिवं, सुन्दरं शोभित,
कपिल, कणाद और जैमिनि की
स्वानुभूति का अमर प्रकाशन,
विशद-विवेचन, प्रत्यालोचन,
ब्रह्म, जगत, माया का दर्शन ।
कोटि-कोटि कंठों में गूँजा
जो अति मंगलमय स्वर्गिक स्वर,
अमर राग है, अमर राग है।

कोटि-कोटि आकुल हृदयों में
सुलग रही है जो चिनगारी
अमर आग है, अमर आग है।

यही आग सरयू के तट पर
दशरथ जी के राजमहल में,
घन-समूह यें चल चपला सी,
प्रगट हुई, प्रज्वलित हुई थी।
दैत्य-दानवों के अधर्म से
पीड़ित पुण्यभूमि का जन-जन,
शंकित मन-मन,
त्रसित विप्र,
आकुल मुनिवर-गण,
बोल रही अधर्म की तूती
दुस्तर हुआ धर्म का पालन।

तब स्वदेश-रक्षार्थ देश का
सोया क्षत्रियत्व जागा था।
रोम-रोम में प्रगट हुई यह ज्वाला,
जिसने असुर जलाए,
देश बचाया,
वाल्मीकि ने जिसको गाया ।

चकाचौंध दुनिया ने देखी
सीता के सतीत्व की ज्वाला,
विश्व चकित रह गया देख कर
नारी की रक्षा-निमित्त जब
नर क्या वानर ने भी अपना,
महाकाल की बलि-वेदी पर,
अगणित हो कर
सस्मित हर्षित शीश चढ़ाया।

यही आग प्रज्वलित हुई थी-
यमुना की आकुल आहों से,
अत्यचार-प्रपीड़ित ब्रज के
अश्रु-सिंधु में बड़वानल, बन।
कौन सह सका माँ का क्रन्दन?

दीन देवकी ने कारा में,
सुलगाई थी यही आग जो
कृष्ण-रूप में फूट पड़ी थी।
जिसको छू कर,
मां के कर की कड़ियां,
पग की लड़ियां
चट-चट टूट पड़ी थीं।

पाँचजन्य का भैरव स्वर सुन,
तड़प उठा आक्रुद्ध सुदर्शन,
अर्जुन का गाण्डीव,
भीम की गदा,
धर्म का धर्म डट गया,
अमर भूमि में,
समर भूमि में,
धर्म भूमि में,
कर्म भूमि में,
गूँज उठी गीता की वाणी,
मंगलमय जन-जन कल्याणी।

अपढ़, अजान विश्व ने पाई
शीश झुकाकर एक धरोहर।
कौन दार्शनिक दे पाया है
अब तक ऐसा जीवन-दर्शन?

कालिन्दी के कल कछार पर
कृष्ण-कंठ से गूंजा जो स्वर
अमर राग है, अमर राग है।

कोटि-कोटि आकुल हृदयों में
सुलग रही है जो चिनगारी,
अमर आग है, अमर आग है।

आओ मिलकर दिया जलाएं

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ

हो आज सिंधु में ज्वार उठा है

आओ मन की गाठें खोलें

यमुना तट, टीले रेतीले,
घास - फूस का घर डांडे पर,
गोबर से लीपे आँगन में,
तुलसी का बिरवा, घंटी स्वर,
माँ के मुंह में रामायण के दोहे - चौपाई रस घोले!
आओ, मन की गाठें खोलें!

बाबा की बैठक में बिछी
चटाई बाहर रखे खड़ाऊ,
मिलने वालों के मन में 
असमंजस, जाऊं या ना जाऊं?
माथे तिलक, नाक पर ऐनक, पोथी खुली, स्वयम से बोलें !
आओ, मन की गाठें खोलें!

यमुना तट, टीले रेतीले,

अंतर्द्वंद

क्या सच है, क्या शिव, क्या सुंदर?
शिव का अर्चन,
शिव का वर्जन,
कहूँ विसंगति या रूपांतर?

वैभव दूना,
अंतर सूना,
कहूँ प्रगति या प्रस्थलांतर?

अपने ही मन से कुछ बोलें

आओ ! मर्दों नामर्द बनो

आए जिस जिस की हिम्मत हो

आज सिंधु में ज्वार उठा है उनकी याद करें

ऊंचाई

एक बरस बीत गया

कण्ठ कण्ठ में एक राग है

कदम मिलाकर चलना होगा

कोटि चरण बढ़ रहे ध्येय की ओर निरंतर

कौरव कौन, कौन पांडव

गगन में लहराता है भगवा हमारा

गीत नहीं गाता हूं

गीत नया गाता हूं

जम्मू की पुकार

जंग न होने देंगे

जीवन की ढलने लगी सांझ

जीवन बीत चला

झुक नहीं सकते

दूध में दरार पड़ गई

दूर कहीं कोई रोता है

देखो हम बढ़ते ही जाते (Dekho hum badhte hi jate)

नई गांठ लगती( Nayi ganth lagti)

नए मील का पत्थर (Naye meel ka patthar)

न मैं चुप हूं न गाता हूं ( Na mai chup hun na gata hun)

Meri 51 kavitayen by Atal Bihari Vajpayee ji

परिचय (Parichay)

पहचान ( Pahchan)

पड़ोसी से (Padoshi se )

पुनः चमकेगा दिनकर (Punh chamkega dinkar)

बबली की दिवाली (Babli ki diwali)

बुलाती तुम्हें मनाली( Bulati tumhe Manali)

मन का संतोष (Man ka Santosh)

मनाली मत जइयो (Manali mat jaiyo)

मातृ पूजा प्रतिबंधित (Matri Pooja pratibandhit)

मैं सोचने लगता हूं (Mai sochne lagta hun)

मोड़ पर ( mod par)

मौत से ठन गई (Maut se than gyi)

यक्ष प्रश्न (Yaksh prashn)

राह कौन सी जाऊं मैं (Raah kaun si jaun main)

रोते रोते रात सो गई (Rote rote rat so gyi)

सत्ता (Satta)

सपना टूट गया (Sapna toot gya)

स्वंतत्रता दिवस की पुकार (Swantarta ki pukar)

हरी हरी दूब पर (Hari hari doob par)

हिरोशिमा की पीड़ा (Hiroshima ki pida)

क्षमा याचना (Kshma yachna)

image sources : Amazon.in , ansuni baate

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